Hindi Kavita by Shri Ashok Vyas
05
Dec
2019
by Nidhi Chandel
Saluting that space within us which sustains newness in soulful manner.
उसके चारों ओर उजाला खिलता था
वो सूरज की तरह मिलता था
उसके अपनेपन में नहाना आसान था
हमारा उसके मूल्य पर कब ध्यान था
पर चलो, इतनी तो है ग़नीमत
देर सही, जानी उसकी क़ीमत
करने उसके साथ का सही सम्मान
परिष्कृत होने पर दे लें अब ध्यान
उसकी ये आश्वस्ति देती मुस्कान
हर मनुष्य में अनंत गुणों की खान
अब चुप हो जायें
मन की सुन पायें
अपना सत्य अपनायें
मौन में खिलखिलायें
प्रकट कर पूर्णता
पूर्ण में मिल जायें
साध स्वर्णिम स्पर्श
अनंत के गुण गायें
-
अशोक व्यास
३० नवम्बर २०१९